Monday, 20 June 2016

हाथ

याचना व्यर्थ है
प्रयत्न ही सार्थ है

जुडे हाथ निःसत्व,
निष्क्रिय,निष्चेतन.

क्रियाशील,कृतार्थ,
कर्मप्रिय,धर्मरत हाथ
जबकाममें  लगते है
लगातार बेशुमार
अथक मेहनत करते है

परिश्रमी हाथोंमें
पारदर्शी,दूरदर्शी
सौंदर्य होता है
उनमें ही
स्थिर श्री होती है
विलक्षण धी होती है

वैभव,सत्ता,समृद्धि, सिद्धि,
हाथोंमें ही होती है
हाथोंका करिश्मा,जादू गिरी
हाथ जब उठते है
कार्यमग्न होते है
दुर्भाग्य,दुःस्वप्न
पलभरमें मिटते है

हाथही भाग्यके ,भविष्यके
उत्कर्षके
शौर्य या क्रौर्यके
जन्मदाता होते है

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