डर की कोई बात नहीं
अब डर काहेका?.
लीडर जो बन गये
निडर जो बन गये
वादे जो किये थे
स्टेज की बाते थी
भुलावा था दिखावा था
भूल जावो सब कुछ
जो कहा था,कहाया था
प्रचारज्वर के
वे सभी प्रलाप थे
बे सिरपैर की बाते
धोखाधडी थी
वोट पाने के लिए
नोट जो दिए थे
पानी सी शराब पिलाई थी
दंगेफसाद जान बूझ
कराने में खर्चे जो हुए थे
उनको अब बेरहमी से
हर हालत में फिरसे जोडना है
तिजोरी भरनी है
हिरे जवाहरात से
वे ही काम आते है
मतदाताओ को खरीदकर
सत्ता हथियाने के
ये ही तो साधन है
प्रलोभन है
चोरी भले ही करनी पडे
चाहे झूठ बोलना पडे
अन्याय,अत्याचार,शोषण भी
करना पडे
तो भी शरम किस बातकी
बेशरम ,बेहया ,बेवफा बनकर ही
लोग लुभाए जाते है ,झुकाए जाते है
कर्ज चुकाए जाते है
फर्ज निभाए जाते है
नये युग में,जनतंत्र में
जनता को वश में करने का
यही एक मंत्र है
खास एक तंत्र है
अब डर काहेका?.
लीडर जो बन गये
निडर जो बन गये
वादे जो किये थे
स्टेज की बाते थी
भुलावा था दिखावा था
भूल जावो सब कुछ
जो कहा था,कहाया था
प्रचारज्वर के
वे सभी प्रलाप थे
बे सिरपैर की बाते
धोखाधडी थी
वोट पाने के लिए
नोट जो दिए थे
पानी सी शराब पिलाई थी
दंगेफसाद जान बूझ
कराने में खर्चे जो हुए थे
उनको अब बेरहमी से
हर हालत में फिरसे जोडना है
तिजोरी भरनी है
हिरे जवाहरात से
वे ही काम आते है
मतदाताओ को खरीदकर
सत्ता हथियाने के
ये ही तो साधन है
प्रलोभन है
चोरी भले ही करनी पडे
चाहे झूठ बोलना पडे
अन्याय,अत्याचार,शोषण भी
करना पडे
तो भी शरम किस बातकी
बेशरम ,बेहया ,बेवफा बनकर ही
लोग लुभाए जाते है ,झुकाए जाते है
कर्ज चुकाए जाते है
फर्ज निभाए जाते है
नये युग में,जनतंत्र में
जनता को वश में करने का
यही एक मंत्र है
खास एक तंत्र है
नेताओ की सोच एवं वोट पानेके लिए क्या करते है तथा आपके असल इरादे क्या होते है यह इस कविता का विषय है.
ReplyDeleteपूर्ण कविता ब्लॉगपर.