Friday, 9 September 2016

बिना पेड के बेल प्रेम की -----

बावरी राधा एक अकेली
ढूंढ रही है श्याम गली गली

वृक्ष लताओं को सहलाकर
पूंछ रही है कहॉं कन्हैया
नटनागर बिन सूना सूना
वृंदावन का कोना कोना

बछडे गायें रंभाती है
बन्सी की धुन सुनने व्याकुल
शोक नदी में डूबा गोकुल
डगर डगर पर छायी उदासी

तू नहीं तो मैं भी नहीं रे
मूर्ति नहीं तो छाया कैसी
बिना  पेड के बेल प्रेम की
निराधार श्रीहरि


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