Sunday, 9 October 2016

जी हॉं मैं विद्यार्थी हूं

जी हॉं ,मै विद्यार्थी ही हूँ

दिमागपोशी का क्या कहूँ?
फैशन का अंधा फैशनपसंद
फैशनेबल पुतला ही हूँ
क्या कहा लक्ष्य कहाँ?
कहनेवाले ने खूब कहा
कितना बडा है जहाँ
वक्त की कुछ कमी नहीं
फिक्र खाक बने तो क्या?
मैं अलमस्त मनमौजी,फक्कड
किताब उफ् सफेद भैंस
उसके बाल अक्षर मच्छर से
डसे ना लहू चूसे ना
सो अनभ्यास की जाली लगए बैठा हूँ

बडे सबेरे ऊठ, बैठ
गोता लगा ग्यान सागर में
कहते बूढे अनपढ अरसिक
क्या वे समझते मुर्गा मुझे?
करू?कुकडू कू कुकडू कू

सबेरे की मस्त हवा गहरी नींद
मीठी रूठी,छोड
कहते,राम राम रटना
राम करे इन्हे न पडे
कहींआखरी राम कहना!

मैं स्वच्छंदी,अनंत फंदी
केवल जीना जानता हूँ
सफेदपोश रहोनहीं
बगुला बनकरजियो नहीं
वा भई, खूब कही


शुचिता,पवित्रता,सभी सफेद
तो मैं भी सफेद,,मेरा विद्यालय सफेद
इसमें मेरी गलती क्या ?
जीवन तेरा रंग कैसा ?
जिसमें मिलाया वैसा
मैंभी अपने राम की
डफली बजानाजानता हूँ


नकल की दुनिया,अकल की भैंस
आज उसकी चलती हैं
सब कुछ यहाँ नकली है
मैं बेचारा! पानी में रह फिर भी न्यारा
कहो कैसे रह सकता हूँ?

अतीत क्या था? जानो
भविष्य उज्वल बनाओ-कहते
अतीत पत्थर अचल पडे है
उनमें शान न कुछ जान
मेरी शान तो देख लो

मानता हूँ सारा जहान
जैसे फूलों की मुस्कान
भौँरा बन फिरू नहीं,
क्या मधुप मैं बनूं नहीं?

चाँद सितारोंपर तहखाने
ढूंढ रहे विग्यानी स्याने
मैं तो केवल चित्र तरिका
चित्र सितारे,चहरे,मुखडे,,
कुछही धडकने,प्यार की बातें,
कुछ तराने, हँसोड गाने
जिनका अर्थ कोई न जाने,
खोज उनकीही करता हूँ
जी हाँ,हाँ,हाँ मैं विद्यार्थी हूँ
नये जमाने का नया विद्यार्थी हूँ

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